पहचान

पहचान, शिनाख्त, अस्तित्व
नहीं ये किसके नाम है
ना ही ये शब्द मात्र है
पहचान, शिनाख्त, अस्तित्व
इन तीन शब्दों की तरह
तीन किरदार है,
यह किरदार बड़ी आसानी से पहचान में आ जाते हैं
लंबे बाल, पिंक लिबास
सही पकड़े हैं…लड़की,
छोटे बाल,स्टाइलिश शर्ट,ट्रेंडी पैंट
सही पकड़े है…लड़का,
लेकिन ये तीसरा किरदार कुछ समझ ही नहीं आ रहा
चलने और बोलने का लहजा,
सामाजिक नज़रिए में बैठ नहीं पा रहा,
ये नहीं पकड़ पाएंगे आप
क्यों की आपकी नज़र में खोट है,
थर्ड जेंडर अब सही पकड़े हैं
पहचान, शिनाख्त, अस्तित्व
अजीब है ना,
नहीं ये मेरे तीनों किरदार के नाम नहीं
यह एक ही शब्द के पर्यायवाची है
अगर इसे आसान शब्दों में कहूं
तो ये एक इमोशन है, भावना है, अनुभव है, और तीसरी ताली.
हाँ अब आप इन्हें एक नाम की पहचान से बुला सकते हैं, भावना अनुभव और तीसरी ताली
ये इनकी अब पहचान है।
किसी महान व्यक्ति ने कहा है,
ज़िंदगी में कुछ किरदार है जो आप चुनते हैं,
और कुछ किरदार ऐसे हैं जो ज़िंदगी आपके लिए चुनती है।
जो कि इन तीनों के साथ हो रहा था।
भावना, जो ख़ुद को हैंडसम और कूल समझता है।
नहीं मेरे ग्रामर में कोई गड़बड़ नहीं है।
भावना जो एक लड़की है, उसे हैंडसम और कूल समझता है। और शोर पेंट में क़ाबिल समझता है।
लोग अक्सर उससे यही ताना देते हैं थोड़ी तो लड़कियों वाली हरकत करलें।
अनुभव जो ख़ुद को साड़ियों और भरतनाट्यम में उमदा है उस से भी ख़ासा दिक़्क़त है लोगों को।
तीसरी ताली के क्या कहने,
खुशियों में जहाँ मौक़ा मिले बज जाती थी,
समाज को उससे दिक़्क़त नहीं थी
क्योंकि उन्होंने उसे कभी उठने ही नहीं दिया।
ज़िदंगी का एक संजोग देखीए,
तीनों किरदार मिले एक ही टेबल पर,
अपनी पह्चान ढूंढते,
वहीं ज़िंदगी, जिसने उन्हें कुछ किरदार दिए थे,
और वही किरदार जो अपने किरदार ढूंढ रहे थे,
मिल जाए तो बताना, ये तीनों यहीं मिलेंगे,
इसी टेबल पर अपनी पहचान ढूंढते
पहचान, शिनाख्त, अस्तित्व
ना ही ये शब्द है और ना ही नाम,
ये एक खोज है
पहचान, शिनाख्त, अस्तित्व।
-सुप्रिया गुप्ता

ए ज़िंदगी अभी ज़िंदा हूँ जिने दे।

मत रोक मुझे तु, में हूँ उड़ता परिंदा…
में अपने दम पर बना सकता हूँ अपनी उड़ान
बस उड़ने दे….
ए ज़िंदगी ज़िंदा हूँ…जिने दे…
मत बाँध पैरों में तेरे सोच की जंजिरे…(२)
में भी ला सकता हूँ सुनहरे भविष्य के सवेरे
बस तेरे इस पिंजरे से आज़ाद होने दे.
ए ज़िंदगी अभी ज़िंदा हूँ…जिने दे…
मत तोल मुझे तु तेरे नज़र से…(२)
में दुनिया बदल सकता हूँ अपने हुनर से…
इस मेंहनत के पसीने को पीने दे…
ए ज़िंदगी अभी ज़िंदा हूँ…जिने दे…
मत रोक कुछ नया करने से…(२)
में डरता नहीं समाज के खोखले जंजिरो से…
इस बदलाव की आग को यूँही जलने दे…
ए ज़िंदगी अभी ज़िंदा हूँ…जिने दे…
कब तक सहेंगे समाज के इज़्ज़त के नाम पर बनाये नियम को…
में ख़ुद को करती हूँ आज़ाद, तोड़ के सारे संयम को…
बस मुझे बेखोफ आगे बढ़ने दे…
ए ज़िंदगी अभी ज़िंदा हूँ…जिने दे…
बस में नई सोच, नया हुनर हूँ…
बदल सकता हूँ, झूठी दुनिया, झूठी शान…
में नहीं बेनाम,
मेंने बनाई अपनी दम पर अपनी पहचान…
बस पुराने ज़ख़्मों को सी ले ने दे….
ए ज़िंदगी अभी ज़िंदा हूँ…जिने दे…

-सरस्वती भंडारे


ओळख

कधी एका सायंकाळी, मीच भेटतो मला स्वतःला।
अन अदबीने सवाल केला, माझा मीच मनाला।
कोण आहे मी? काय माझी इच्छा अाणी ध्येय?
सुर्य आला मावळतीला, एकटाच मी होय।
मनात मजला कळुन चुकले, खुप गर्दी आहे विचारांची।
शोधु लागलो, पाहु लागलो, समज़ु लागलो तेची।
हे लोक विचार करतात एका रेषेच्या मर्यादेत।
मी जरा ओळखु लागलो, हे जग माझ्या भाषेत।
क्षणात साऱ्या विचारांची गुंफण आता संपली।
माणूस म्हणून मी माणुसकी मनात रूजली।
होय! आहे मी समलिंगी वा असले किननर।
असो काहीही परंतु ओळख माझी हिच तर।

– योगेश जावले


पहचान

वक़्त की सुई टिक टिक करके कुछ तो कहना चाह रही है,
ख़ामोशी में भी चुपके चुपके अपनी पहचान दिखा रही है।
कह रही जैसे मुझ जैसे ही चलते रहना,
धीमे धीमे क्यों ना हो बस आगे बढ़ते रहना।
एक जगह ही रूक जाओगे, समझो वही फँस जाओगे।
फिर आगे कुछ ना कर पाओगे, जैसे भीतर ही मर जाओगे।
रेख टोक बहुत होगी, निडर बन सामना करना।
मन की निष्ठा बरक़रार रख, तुम भी ख़ुद की पहचान बनाना।

-तुषार काम्बले


मेरे  घर  की  बिजली  चली  गयी

उस रात मेरे  घर  की  बिजली  चली  गयी ,
देखा  आस  पास ,
तो  थी  ,
बाकी  घरो  में  बिजली  आ  रही ,
ये  कैसी  दुविधा  थी  कि ,
बस  मेरे  घर  की ,
बिजली  चली  गयी …
जो पंखा इतने समय से,
दे रहा था हवा कि सिसकिया,
आज यूं,
अचानक बंद हो गया,
कोई जाग रहा था,
आदत थी किसी को शायद,
 जो कोई ऐसे ही सो गया…
ये जो पसीने आ रहे थे ,
मेरी काया पर,
क्या वो गर्मी कि निशानी थे,
या कोई डर था मन का,
जो पसीने बनकर निकल रहा था,
कि कही,
बिजली वापस न आयी तो,
क्या होगा…?
करवटे बदल-बदल कर,
अब जब नींद टूट गयी,
लगा कोई भयानक सपना तो नहीं ये,
दिल घबराने लगा,
और चादर,
चादर पीछे छूट गयी…
जलाई थी जो मोमबत्ती,
पिघल-पिघल कर अब थी,
आंखे मूँद रही,
इस अँधेरी माया में,
मेरे विचारो कि गहराई,
शायद थी संयम ढूंढ रही…
एक सन्नाटा था,
चारो तरफ,
जो था कुछ कहने कि कोशिश कर रहा,
सुन नहीं रही थी आवाज़,
और दिख नहीं रहा था रास्ता,
फिर भी मन अडिग रहा…
बादलो के पीछे से फिर जब,
अगली रोज़,
खिड़कियों के तले धीमी-सी,
सूर्य कि हल्की किरणे आने लगी,
पक्षी चहचहाने लगे और,
हर दिन की तरह,
उस रात के बाद भी,
सुबह की बेला छाने लगी…
Lakshya Arora

Meri pyaari bindu

Aaj Valentine’s hai,
Ha Pata hai aaj sab apne premi k saath busy honge, par aaj ye patra mein tumhe likhna chahta hu.
Kyunki agar tum na hoti toh mein na hota
Agar tum na roti toh mein na hota
Agar tum na ladti toh mein na hota
Agar tum na marti toh mein na hota
Meri pyaari bindu
Aaj 40 saal guzar gaye,
Yaad tum aati ho par mein tumhe bhul chuka hu,
Log aaj bhi mujhe tumhare naam se pukarte hai Aur mein chidd jaata hu.
Pata hai jab maa ne mujhe mere naam se bulaya “Bandish beta,  zara yaha aana” tab maano tumhare naam se bandeshein toot gayi. Baaba aaj tak bindu hi bulate hai, par kya kare rishta hi waisa tha tum baaba ki Dulaari par aaj bhi wo mujhe hi pyaar karte hai ha! Ab toh tumse zyaada!
Meri pyaari bindu
Accha hua jo tum chali gayi, aur kitne din tum chupkar Jeeti,  accha hua tumne baaba ko bata diya ki wo Dheeraj kya karta tha tumhare saath,  roz roz ki maara piti,  raat mein zabardasti. Kyunki usse pata chal gaya tha tumhe koi aur pasand thi,  accha hua tumne baaba ko saara sacch bata diya aur baaba ne tumhe dheeraj se suna. Aaj baba ki wajah se  mera janm hua aur uska shrey tumhari himmat ko jaata hai.
Meri pyaari bindu,
Log tumhe kitne taane dete they, maa-baaba ko bhi takleefein sehni padi par tumhare hauslein hum Sabko ekjoot karke rakha.
Logo ne ye tak kaha ki tum mujhe isliye chahti ho kyunki tumhe uss ladki se pyaar hai.
Ye bhi kaha ki tum bachpann se aisi nahi thi,
Tum kuch bhi karlo par ek ladki hi rahogi,
Yeh tak bhi keh daala
Ki tum samajhti ho ladkiyan kamzor hoti hai isliye tumhe ladka banna hai.
Waah, kya duniya hai na bindu?
Inhe kya pata tumhe kitne dard se guzarna pada mujhe iss jeevan mein laane ke liye,
Par mere zinda hote hi tum maut ki gehraiyon mein so gayi, par pata hai aaj maa kya kehti hai Bindu se accha toh humara Bandish hai.
Mein tumhara shukrguzaar hu bindu
Ki tumne mujhe iss duniya mein laaya, aaj mein tumhe kehna chahta hu, I love you meri pyaari Bindu.
Swapnil Alizeh.

You say I’m a girl, and girls must wear frocks and pinafores.
I think of a future when I can wear t-shirts and try to ignore the frills for now.
You say you’re doing this for my good, and tell me to wear a bra, and wear kurtas and salwar, and wear sarees.
I feel the dupatta around my neck like a noose.
You say you’re feminist but speak of only two genders, this or that, that or this.
I say I’m everything in-between and beyond.
You say you’re queer but want to know if I’m a woman or a man.
I say I’m both, and I’m neither.
You see my freshly shaved head, and for first time ever, you ask me for my preferred pronoun and how I identified.
I wonder if my long hair had masked everything else that I had ever said or done till that point.
You say you’re trans and tell me that it will get better, and that I must accept that I’m trans.
I wonder why must I be cis or trans, this or that.
You tell me to be brave, and not be scared.
I say it’s not always about fear or bravery, and why must you assume that I’m scared if I don’t choose your choice.
You ask black or white (pink or blue)? Pick one!
If not black or white, then what?
Tell me a colour. What should I call you?
Which box should I put you in?!
Why won’t you fit into any of the queer boxes?!
I hear the questions, the snide comments, the hushed remarks, and the loud statements.
“Kya aap pakka aurat ho?”
“This is the women’s toilet.”
“Sir-madam-si-mada-…?”
“S looks just like a boy, not at all like a girl.”
“I gave birth to a daughter. How can my daughter be like a boy?”
*whispers* “Don’t know if it’s a man or a woman”
You continuously demand my secrets for your “clarity”, in the name of truth.
Fine! I will tell you. But will you listen?
Smita V.